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कविता

होना

प्रमोद कुमार तिवारी


कुछ लोगों का होना
'होना' लगता ही नहीं
जैसे नहीं लगता
कि नाक का होना
या पलक का झपकना भी
'होना' है।
पर इनके नहीं होने पर
संदेह होता है खुद के 'होने' पर
ये कैसा होना है
कि जब तक होता है
बिलकुल नहीं होता
पर जब नहीं होता
तो कमबख्त इतना अधिक होता है
कि जीना मुहाल हो जाता है।


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